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Back to Ghar verse
बहुत ही सुन्दर और बहादुर शेरों में बब्बर, मगर शेरनी बच्चे पाले ठांव-ठांव जाकर | शेर तनिक न बने सहायक काहे का वनराज, निज-हितकारी गृह-स्वामी का घर निकम्मा घर ||
मानुष सोचे अमर स्कीमें कुशल हैं कारीगर, चीलों जैसी मौत घूमती गगन में, भूले पर | ताक लगी रहती है जिसको-दीखे जो कमज़ोरी, मार झपट्टा ले जाती है खाली करती घर ||
इतराता है क्यों कर जातक मार नीरीह कबूतर, थप्पड एक पड़ा तो पल में होश उड़ेंगे फुर्र | और कहीं आज़माओ ताकत मत मारो मासूम, बाहर कहीं जो मिला भेड़िया, जाओगे रोते घर ||
अरे शिकारी मार न पंछी इतना जुल्म न कर, फल भीषण है इस गुनाह का लागे तूने न डर | यह निर्बल,बलवान बलि वह देखे सारे पाप, हँसता- बसता क्यों उजाड़े तू किसी का घर ||
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