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Back to Ghar verse
प्रेम की किसने थाह है पाई प्रीत गहन-सागर, नफ़रत की पैमाईश भी न आसां होती पर। इतना भेद तो इनका समझ में सबके आता है, नफ़रत घर को तोड़े लेकिन प्रीत बनाती घर ||
माथे की तू पोंछ ले तू भृकुटि, चेहरे जऐ संवर, क्रुद्ध रूप यह देख तुम्हारा, सेहमा सारा घर। नहीं भूलना सीखे यह मेरी ‘खींचे रखना डोर’, प्यार और अनुशासन ही मिल कर सुखी बनाते घर ||
मानुष इक दिन करने लगा था अल्लाह से अकड़, कहे मैं सब से सार को जानूं, मैं ज्ञानी चातुर | अल्लाह पूछे क्या है तेरा बोलो मुझसे रिश्ता, तब मानुष सर नीचे कर के आया वापिस घर ||
कच्चा धागा प्रीत, कह गए रामधन कविवर, यही सूत जब कसने लगता देता लाख फ़िक्र | पया रामधन जी मुझ को दे दो ऐसी सीख, अगर बंधी न डोर प्रीत की कैसे बनेगा घर ||
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