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Back to Ghar verse
नैय्या है कमज़ोर और लहरें आई है ऊपर , धारा में है तेज़ नुकीली चट्टानें-पत्थर। घाट पे नर्तन करती पीड़ा, घुंगरुं उसके छनकें , आशाओं का मांझी , बोलो कैसे पहुँचे घर ||
समझ गणित न आए इसमें कितने हेर और फेर, डैडी आप दिला दो मुझ को स्वयं एक कंप्यूटर। टीचर खुद ही परेशान है देख के गणित नया , बोलें- जाओ नालायकों सीखो जा कर अपने घर ||
सपनो के आकाश में साथी नीचे तनिक उतर , हाथ सलामत तेरे इनसे काम ज़रा तू कर | बिन उद्यम के सपने तो साकार नहीं है होते , पुरुषार्थ साकार है करता सपनो वाला घर ||
जीना दूभर हो जाए जब बन जा तू निडर , हिम्मत टूट गई तो समझो रहे न खोज-ख़बर। काम पे जाते बेटे को यह कहती निर्धन माँ, लौट के तुम आ जाना बेटा अपनी माँ के घर ||
बाहर हँसती भीतर-भीतर चुभते हैं खंजर, पुच-पुच करती चुम्मा देकर ख़ुश करती है पर। जीवन के संघर्ष और तिस पर घुन-खाया उद्यम, बात समझ न आए तो फिर ढहता जीवन-घर ||
मानव अक्खड़ होते हुए भी होता बहुत चतुर, पड़े ज़रूरत तो कर लेता हृदय को पत्थर। इसकी जिजीविषा की महिमा है वेदों में वर्णित, वक्त पड़े तो त्याग दे बिन-झिजके यह अपना घर ||
‘बस इतना ही?’ मुझे चिढ़ाए तू यह कह-कह कर, जितनी पीड़ा भोगी मेरी उतनी सख्त पकड़ | ढीली लगे तो सारे जग का दर्द संभाल के रखना और उषे ले रूह मेरी तू, आना नेरे घर ||
हिम्मत टूटे तो ले डूबे जीवन जल-गहवर, हाथ और पैर चलाता जा तू सिर तू ऊपर कर | इस गहवर से बचना है तो बन जाओ तैराक , तभी घाट पे पहुँचोगे पाओगे अपना घर ||
जीवन तरसायेगा, कुचलेगा कब तक आखिर, मई वियोगी ज़िद है मेरी अड़ियल ज्यों खच्चर | चाबुक खून चुभन सहूँ पर न छोडूं यह ज़िद , घर बनाने आया हूँ तो,निश्चित बनेगा घर ||
कठिन दिशा गर पकड़ी है तू रास्ता पूरा कर, वार्ना दुनिया कर देती है अपमानित दर-दर| मुश्किल को जो आसां करके घर को तुम लौटोगे, अभिनन्दन को मचल देगा हश-हश करता घर||
इच्छा, इच्छुक ऐसे जैसे जंगें और शस्त्र, इच्छुक की इच्छा होती है बहुत ज़रूरी, पर | गर इच्छुक न करे ख़्वाहिश युद्ध कभी न होता, टंगे दीवारों पर रहते हैं अस्त्र-शस्र तब घर ||
इंतज़ार के पल लगते हैं भारी वर्षों पर प्रति-पल भरता अनगिन चिंता ह्रदय के भीतर | मधुर-मिलन के साल बीतते आँख झपकते ही , इंतज़ार में तिल-तिल करके जलता अपना घर ||
कल हमेशा कल ही रहता, कुछ तो सोच विचार, कल का भी कल होता आया रुकता नहीं सफर | कल पर जिसको टालो होता कभी न पूरा काम, घर को कल पर छोड़ेंगे तो नहीं बनेगा घर ||
गांधी बना न जाए यारो,पहन के तन पे खद्दर, गांधी टोपी पहन के या फिर लम्बे देकर लेक्चर | कर्मों का योगी था गांधी, सत्य था उसका बल, राज दिलों पे करता था पर स्वयं था वह बेघर ||
हर आदत मकड़ी का जाला इसकी सख्त जकड़, निकल न पाता जो फंस जाता, इस जाले अंदर | जिस्म झिंझोड़े, उछालो-कूदो मुक्ति नहीं है मिलती, बड़ा ही जकडालू होता है मकड़ियों का घर ||
जीवन एक पतंग की नांईं, छूती है अम्बर, परवाह नहीं जो मांझा देता चीरें हातों पर। कस के रख तू बिना ढील के, मांझा बहुत है तेज़, यदि लड़ाने पेंच चढ़ा कर लाने वापिस घर ||
शौक अनोखा पाला है गर मन मंदिर के अंदर, साध बना लो उसको अपनी सब साधों से ऊपर | भूख और लोभ को दिल से त्यागो, उसकी राह ना छोड़ो, मिट जाये हस्ती तेरी या उजड़े तेरा घर ||
हो अगर ना दिल मानव का निर्भय और निडर , तो मानवता खतरे में है मुझको लगता डर | किस खातिर यह घर-चौबारे, लुटे जो अपनी लाज, तोड़ो ऐसे महल-मीनारे , फूंको ऐसे घर ||
मत कर निंदा कुंज की यह तो लम्बा करे सफर, विश्राम-स्थल की खोज में चाहे थक जाते हैं पर | ख़ास जगह ही बुने घोंसले , ममता का बंधन , लम्बे सफर पे फिर उड़ जाना छोड़ के अपना घर ||
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