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खीझ न मेरी अम्मा न तू ऐसे रूठा कर , बतलाता हूँ कहाँ रहा मई फिरता यूँ आखिर | एक गौरेया घर थी बुनती उसको झाड़ा हैरान , रहा देखता देर लगी यूँ मुझे लौटते घर ||
मत कर निंदा कुंज की ये तो लम्बा करे सफर, विशराम-स्थल की खोज में चाहे थक जाते है पर| खास जगह ही बने घोंसला , ममता का बंधन , लम्बे सफर पे फिर उड़ जाना छोड़ के अपना घर
यह मन पाखी उड़ता जाए , भले थके हो पर, उड़ते-उड़ते तन का चाहे बन जाये पिंजर | न ही उसका ठौर ठिकाना , न इसकी मंज़िल, लम्बी दिव्य उड़ाने पे निकला , पर न कोई घर ||
इतराता है क्यों कर जातक मार नीरीह कबूतर, थप्पड एक पड़ा तो पल में होश उड़ेंगे फुर्र | और कहीं आज़माओ ताकत मत मारो मासूम, बाहर कहीं जो मिला भेड़िया, जाओगे रोते घर ||
मत कर निंदा कुंज की यह तो लम्बा करे सफर, विश्राम-स्थल की खोज में चाहे थक जाते हैं पर | ख़ास जगह ही बुने घोंसले , ममता का बंधन , लम्बे सफर पे फिर उड़ जाना छोड़ के अपना घर ||
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