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अगर देखनी चाहो लीला प्रेम की , बनो निडर, डरते-डरते कदम न रखना प्रेम के इस मंदिर | लाज प्रेम की रखनी है तू इसे लहू से सींच , प्यार खून से रंगे न जब तक बनता नहीं है डर ||
गंवई-देहाती जंग को जाते योद्धे यह निडर , देशभक्त, पर देश कौन-सा, कुछ ना होश-खबर | जंग लगी है किस कारणवश इतना भी ना जाने, पर यह जाने उन्हें बचाने लड़ कर अपने घर ||
हो अगर ना दिल मानव का निर्भय और निडर , तो मानवता खतरे में है मुझको लगता डर | किस खातिर यह घर-चौबारे, लुटे जो अपनी लाज, तोड़ो ऐसे महल-मीनारे , फूंको ऐसे घर ||
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