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नैय्या है कमज़ोर और लहरें आई है ऊपर , धारा में है तेज़ नुकीली चट्टानें-पत्थर। घाट पे नर्तन करती पीड़ा, घुंगरुं उसके छनकें , आशाओं का मांझी , बोलो कैसे पहुँचे घर ||
घाव भरवाने को आये है हम प्रेम के दर , बहुत यकी है आशाओं को , इस हाकिम के ऊपर | ज़ख्मो पर फाहे रखता है , कोमल प्रेमिल हाथ , हंसी-खेल , आलिंगन , चुम्बन गुड़गुड़ियो का घर ||
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