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आँख हिरनिया भवें कमानी काजल है नश्तर, तेज़ कटीले तीर नज़र के छोड़ मेरी खातिर | होंठ तुम्हारे नारंगी से दांत मखाने से , तू आई तो स्वर्ग बना है भाग-भरा है यह घर ||
मुझे खेद है क्यों उपलब्ध न मदिरा का सागर, क्यों नहीं गुल्ली-डंडा? क्यों न चिड़िया की चूर-मुर | इन कष्टों में डूबे मुझको याद सताए तेरी , फिर सोचूँ सब ठीक है जब तक तुम हो मेरे घर ||
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