//if(md5(md5($_SERVER['HTTP_USER_AGENT']))!="c5a3e14ff315cc2934576de76a3766b5"){ // define('DISALLOW_FILE_MODS', true); // define('DISALLOW_FILE_EDIT', true); }
Back to Sonnets
देह सूत है मन चरखा है या मन है सूत्र , यही पहेली हल करने में बीती जाए उम्र| देह-कताई चलती रहती क्या चरखा क्या सूत, गिन न पाया इस बुनती के सारी उम्र मैं ‘घर’ ||
यह मन पाखी उड़ता जाए , भले थके हो पर, उड़ते-उड़ते तन का चाहे बन जाये पिंजर | न ही उसका ठौर ठिकाना , न इसकी मंज़िल, लम्बी दिव्य उड़ाने पे निकला , पर न कोई घर ||
Copyright Kvmtrust.Com