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दिन चढ़ते ही पंख पखेरू , मेहनतकश चाकर, जीने का संघर्ष है करते फिर कितने यह दिन-भर | सांझढ़ले जब हो जाते है थक कर चकनाचूर , थकन मिटाने दिन भर की वो वापस आते घर||
बहुत मिला धन कुछ लोगो को मिला ना चैन मगर , चोर – बाजारी के कारण ही मन में समाया डर मखमल के गद्दों पर भी न आती नींद उन्हें , चोर यदी मन में आ बैठे नरक बने है घर ||
तीर्थ स्थान मिले बेगाने, हर एक तीर्थ पर, गर्व करें अपनी भक्ति पर बड़े-बड़े मंदिर | भक्त हैं एक-दूजे को देते पते-आशीषें-भेंटें, पर सब जाते सुख पाने को अपने-अपने घर ||
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