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रूप तेरा यह रहने न दे सुधबुध रत्ती भर, तुझे बैठा कर मेरी सजनी सर और आँखों पर। ऐसा मेल-मिलाया मैंने शिव-गौरी भी उचके , जिस शब तूने रात गुज़री पहली मेरे घर ||
मैं बांधूंगा सेहरा जिसमें आशाओं की झालर, बाराती बारात में मेरी वायदों के लश्कर | प्रीत के मैं पंडित बुलवाऊँ, मंत्र प्रेम के सुनने, रक्त का मैं सुन्दर सजा दूँ तेरे माँग-घर ||
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