//if(md5(md5($_SERVER['HTTP_USER_AGENT']))!="c5a3e14ff315cc2934576de76a3766b5"){ // define('DISALLOW_FILE_MODS', true); // define('DISALLOW_FILE_EDIT', true); }
Back to Sonnets
मुल्ला दे जो बांग तो उसकी बांग अनसुनी ना कर, पंडित पूजा करे तो सुन ले उसका भी मंतर। राम-रहीम तो हैं इन छोटी सीमाओं से दूर, यह सारा ब्रह्माण्ड उसी ‘बेघर’ का अपना घर ||
सुन विलाप हीर का हरगिज़ ठट्ठा-हँसी न कर, बारिसशाह का किस्सा सुनकर सिसकी आहें भर | इक -दूजे को तरसें रहें, दुनिया करे अलग, शोक भरे दुखांत यह किस्से,शोकाकुल है घर ||
ना मैं मियाँ, राजपूत ना, ना पंडित ना ठक्कर, मेरी कोई जात नहीं, ना भोट ना मैं गुर्जर | नाम है धाकड़,काम है धाकड़, मेरी राह भी धाकड़, इस दो-मुंही दुनिया अंदर कोई न मेरा घर ||
मै पागल था दुनिया ने भी समझा , की न खातिर, मैंने भी सम्मान दिया न , किया न उसका आदर | देता क्या आदर उसको जो समझे मुझे अकिंचन, उसकी खातिर क्यों उजाडूँ मै अपना ही घर ||
Copyright Kvmtrust.Com