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तर्क और तकरार का मन में भरा रेत-सागर, इस पर चलने से होता है मर जाना बेहतर। अगणित पड़ जाते हैं ऐसे रूह के ऊपर , डगर छोड़ कर रुकना पड़ता किसी-किसी के घर ||
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