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बिटुए नुक्कड़ में बैठ कर क्यों करते हो खुर-खुर, नहीं उठ रहे पाट ये भारी चक्की के सर पर। नहीं उठ रहे तो रहने दो तेरी आस है कोमल , यह अभिलाषा ठोस बनाएगी आशा का घर||
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