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कल तक पत्ते हरे भरे थे आज लगी पतझर , कब तक हरित की प्रतीक्षा में रहोगे यूँ आतुर। पतझर आई है तो हरे भी लौटेंगे, रे मन, जीवन नाम गति का यूँ न बैठ बिसूरो घर ||
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