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बिन तेरे मैं साथी, भटकूं दुनिया में दर-दर , मेरा कोई हमदम न था तरसा जीवन भर | चाहत-संशय-तर्क अनगिनत देह में रहे समाये , और नसों मैं हुए धमाके ढह गया मेरा घर |
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