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बीते समय के खेत में दिखता मुझको ये अक्सर, घर बनाता बालक कोई ढेरी के ऊपर। मैं बचपन को याद करूँ तो अंतर समझ में आए, सपने वाला कैसा था और कैसा असली घर ||
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