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जीवन कोहलू-घर मानव का इन्सा है ‘डंगर’, और काल के खाल-खींचते , ज़ालिम है हंटर | बहुत झमेले , बहुत बखेड़े , जीवन के दिन चार , उखड़ी सांस , न घास मयस्सर , पानी भी न घर ||
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