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हश्र क्या होगा तन का तेरे, तुझ पे है निर्भर, एक समय आता हो जाता जब बद से बदतर | पीड़ा की दौलत से तब भर लेना तुम तिजोरी, पीड़ा की बुनियाद पे बनता रसता-बसता घर ||
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