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पृथ्वी की गोलाई से ही क्षितिज बने हैं, मगर, हद इसकी एक और भी होती, मानुष की नज़र | पृथ्वी की गोलाई को तो बदल नहीं हम सकते , सीमा क्षितिज की बदल सकेंगे बनवा ऊंचा घर ||
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