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अरे शिकारी मार न पंछी इतना जुल्म न कर, फल भीषण है इस गुनाह का लागे तूने न डर | यह निर्बल,बलवान बलि वह देखे सारे पाप, हँसता- बसता क्यों उजाड़े तू किसी का घर ||
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