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ले यह भेंट और दे चरणामृत दाता मेरे ठाकुर, मैं चढ़ावा लेकर आया अपनी कविता ‘घर’ | ना मैं लाया भेंट रूपया ना ही मांगू दौलत, मेरी भेंट यह लेकर बाँट आना घर-घर ||
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