Back to Ghar verse
मेरा भाग्य सराह रहा वो हाथ की रेखा पढ़ कर, फीस भरो तो बतलाता हूँ किस्मत का चक्कर | दिल करता है कह दूँ पंडित अपना भाग्य सम्भालो, फिर सोचूं कुछ चुग्गा लेकर उसे भी जाना घर ||
होनी तो होकर रहती है काहे करे फिकर, तभी कहूँ मैं प्यार तू करले, करले प्यार तू कर | मिलन ख़ुशी लेकर आएगा, देगा दुःख वियोग, घर न अपना कहलाएगा, खाली सूना घर ||
परमेश्वर है एक इकाई , न नारी न नर, हर वास्तु में वास है उसका जानू ज़ोरावर | रूप न उसका, न गुण-वृति ,सीमा है बे-हद , उसकी हद को ढूंड न मूर्ख बैठे-बिठाये घर ||
मानुष इक दिन करने लगा था अल्लाह से अकड़, कहे मैं सब से सार को जानूं, मैं ज्ञानी चातुर | अल्लाह पूछे क्या है तेरा बोलो मुझसे रिश्ता, तब मानुष सर नीचे कर के आया वापिस घर ||
कल हमेशा कल ही रहता, कुछ तो सोच विचार, कल का भी कल होता आया रुकता नहीं सफर | कल पर जिसको टालो होता कभी न पूरा काम, घर को कल पर छोड़ेंगे तो नहीं बनेगा घर ||
मानव जैसे-जैसे चलता साथ चले अम्बर क्षितिज की दूरी चलते-चलते मिटती नहीं मगर | द्रिष्टी और पृथ्वी के सम पर क्षितिज बना ही रहता, इस तरह जो चले उम्र भर कभी न पहुँचे घर ||
इंतज़ार के पल लगते हैं भारी वर्षों पर प्रति-पल भरता अनगिन चिंता ह्रदय के भीतर | मधुर-मिलन के साल बीतते आँख झपकते ही , इंतज़ार में तिल-तिल करके जलता अपना घर ||
‘राजपूत-स्कूल’ में पढ़ते ,जम्मू के अंदर बेली राम हुआ करते थे हिस्ट्री के मास्टर | ऐसा सबक पढ़ाया उन्होंने इस जीवन का सुन्दर भूला नहीं, तभी बन पाया दिव्य मेरा यह घर ||
देखी एक मुद्दत बाद आज एक मज़ेदार पिक्चर , लड़की का तो याद नहीं पर हीरो था शंकर। उससे सबक मिला की अपनी किस्मत को न कोसो , खूब सजा कर रखो इसको जैसा भी हो घर ||
किस्मत चांस बराबर देती रखती न अंतर ,
लोग कहें सब ज़ालिम इसको मैं न मानूं पर |
जिसमे जितनी सकत है आगे उतने पाँव बढ़ाता ,
जिसकी जितनी पहुँच है इतना ऊँचा उसका घर ||
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