Back to Ghar verse
तीर्थ स्थान मिले बेगाने, हर एक तीर्थ पर, गर्व करें अपनी भक्ति पर बड़े-बड़े मंदिर | भक्त हैं एक-दूजे को देते पते-आशीषें-भेंटें, पर सब जाते सुख पाने को अपने-अपने घर ||
दर-दर भटकूँ पूर्व, पश्छिम,दक्षिण, और उत्तर, मुझसे कहीं छुपा रखे थे दाता ने अक्षर | गली-गली मैंन भटका, कोमल पंक्ति मिली ना एक, मिली अंततः मुझे अचानक खड़ी वो मेरे घर ||
घर की शोभा बने गृहस्ती और उसके अंदर आशाओं के बीजों से ही फूटे प्रेमांकुर | यह है क्यारी तू माली है सींच गुढ़ाई कर, मधुर सुवासित गुलदस्तों से सजेगा तेरा घर ||
घर का लोभ तो होता है हर लालच से ऊपर, घर की खातिर दुनिया लेती दुनिया से टक्कर | खून-कत्ल होते भाइयों में इसके ही ख़ातिर , हर कोई इसकी रक्षा करता , ऐसी चीज़ है घर ||
जो बेघर हैं उनके हित में इस दुनिया अंदर , अपना नहीं ठिकाना कोई ना ही अपना दर | करें चाकरी घर-घर जा कर जमा करें दौलत , आशा है तो केवल इतनी हो अपना भी घर ||
मज़दूर के पैसे लेके जाता ठेके पर, घर आकर फिर गर्जन करता यह कंजरी का घर | प्रेत नशा, न दिखते उसको बच्चे भूखे-प्यासे, घर घोंसला होता है जो समझे उसको घर ||
घर हौंसला होता है बच्चे मांगे बहियन पर, पंख मिले तो भरे उड़ाने बच्चे गिर फर-फर| बैठे अकेले अम्मा रोती , रहता बाप उदास, नीड बनाते बच्चे अपना, कर के सूना घर
रम न दौलत-सम्पत्ति में इनके लिए ना लड़, पहले खर्च कमाई कर के फिर आराम से मर। दौलत व जायदाद की खातिर लड़ते सगे-सहोदर, इस कारण धन जोड़ ना ज़्यादा, मुफ़्लिस कर ले घर ||
मत कर निंदा कुंज की ये तो लम्बा करे सफर, विशराम-स्थल की खोज में चाहे थक जाते है पर| खास जगह ही बने घोंसला , ममता का बंधन , लम्बे सफर पे फिर उड़ जाना छोड़ के अपना घर
कुड़ी वह गांव बगूने की रूपवती चंचल, उसके रूप अनूप पे जाके अटकी मेरी नज़र | देख के उसको दिल खिल उठता रखूं उसको पास , जब तक जीवन तब तक होगी प्रीत हमारा घर
खीझ न मेरी अम्मा न तू ऐसे रूठा कर , बतलाता हूँ कहाँ रहा मई फिरता यूँ आखिर | एक गौरेया घर थी बुनती उसको झाड़ा हैरान , रहा देखता देर लगी यूँ मुझे लौटते घर ||
दिन चढ़ते ही पंख पखेरू , मेहनतकश चाकर, जीने का संघर्ष है करते फिर कितने यह दिन-भर | सांझढ़ले जब हो जाते है थक कर चकनाचूर , थकन मिटाने दिन भर की वो वापस आते घर||
एक दिन मई दुखियारा पहुंचा शिवजी के मंदिर , मगन खड़ा था शिव-अर्चन में साधु एक्कड़ | मई बोलै विपता का मारा सीख दीजिये कुछ , बोलै वह, क्यों आये यहाँ पर तेरा मंदिर घर ||
समय बहुत ही ज़ोरावर है , किन्तु मौके पर, रेखा कोई अनजानी सी , खींचो सीने पर | यही समय तो रास रचाता, देता है सुर ताल , प्रेम प्रीत से गीत बने फिर , लाड-प्यार से घर ||
रंगमंच जो घर मेँ हो तो फिर उसके अंदर, भेदभाव की दीमक लगती है और व्यापे डर | ऊपर-ऊपर प्रेम दिखावा भीतर विश्वास , इसी तरह जर्जर हो जाते है खड़े खड़े ही घर ||
कहे कहावत मात-पिता की करनी भुगतेय पुत्तर , लेकिन ऐसी चिंताओं से उठ जा तू ऊपर | बुरा किया जो पुरखों ने, तू भोग ले उसका अपयश, पर अच्छाई उनकी लेकर सजा ले पाना घर ||
पूनम बेटी बात सुनो तुम तनिक कान धार कर, जान लो , कोई जान सका न किस्मत का चक्कर| जो होना है, हो जायेगा, जाने कौन क्या होगा, तेरे भाग में क्या बताऊँ लिखा है किसका घर ||
रश्मि बेटे तू खाती है चीनी और शक्कर, सुन तू मेरी, तुझे बताऊँ जीवन का इक गुर | तेरी मीठी-नर्म तबीयत और तेरा यह हठ, इन्हीं में अनुरूप रचोगी मन-मर्ज़ी का घर ||
शालू बीटा गोपी बनती तू लेकर गागर, ‘गिद्दा’ गाती, एक्टिंग करती, और बनती एक्टर। मेहनत से पढ़- लिख कर तू भी सीख ले थोड़ी हिंदी , मानोगी जो ये सीख मेरी फिल्म बनाएंगे घर ||
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