Back to Ghar verse
जो आया है उसको जाना है , पूर्ण कर चक्कर, इक पल हँसना खीझ घडी- भर थोड़ा माल-ओ -जर | उसके बाद न सूरज होगा, ना होंगे तारे, कलमुंहें अंधियारे में काँपेगा थर -थर -घर ||
चल रे मन आ सुनें कहीं जा चिड़ियों की फुर-फुर, जन्म -मरण के झंझट भूलें कड़वे और बे-सुर | मस्त हुलारे लेकर मनवा झूले झूला आज , इन्ही सुहानी खुशियों में संग रंग ले अपना घर ||
‘प्यार कृपण न, क्यों लगाए तू िक्कड़-दुक्कड़, अपरिमित है दौलत इसकी , क्या करना गिन कर | दिल इसका है शेरों जैसा , जान लुटा देता है , बाँहों मेँ अम्बर भरता है तभी तो इसका घर ||
घाव भरवाने को आये है हम प्रेम के दर , बहुत यकी है आशाओं को , इस हाकिम के ऊपर | ज़ख्मो पर फाहे रखता है , कोमल प्रेमिल हाथ , हंसी-खेल , आलिंगन , चुम्बन गुड़गुड़ियो का घर ||
सबको एक सामान धरा पर देता परमेसर, राजा रंक जिनवर पंछी, निर्बल ज़ोरावर | चरसी और नशेड़ी को भी देता दिन प्रतिदिन, चौबीस घंटे भेदभाव न उसके लंगर-घर ||
कठिन दिशा गर पकड़ी है तू रास्ता पूरा कर, वार्ना दुनिया कर देती है अपमानित दर-दर| मुश्किल को जो आसां करके घर को तुम लौटोगे, अभिनन्दन को मचल देगा हश-हश करता घर||
मेरी जान ! बरसना है तो बरसो बन बौछार, झिजक, क्लेश मिटा दे सारे तू निर्भय होकर | घोल दे हर शंका, बह जाने दे हर संशय को, चलो डुबो दें कसक भरे, गहरे गहवर में घर ||
कहे यदि वह मुझे कि- तेरी कविता है सुन्दर, पूजूंगा उसको रख अपना माथा पैरों पर। नहीं थकूंगा लेते उसके गोरे गालों का चुम्बन, कर-कमलों से पकड़ के उसको ले आऊँगा घर ||
नक़्शे सोचो, रूप विचारो सुन्दर घर के, पर, अपना नाम लिखा लो चाहे ईंट-ईंट ऊपर | खूब सजाओ खूब संवारो इसका कोना-कोना, लोग देख कर बरबस बोलें, कितना सुन्दर घर ||
ढोली ढोल बजा कर कहता कर ले तू ‘जातर’, संग मसान के खेल-कूद ले नाच ताल के ऊपर | मैं तो डग-डग थाप लगाऊँ, जो भी मन को भाए, नाच ले , या अनमना बैठ धुन्धुआता रह तू घर ||
लोग कह रहे मैं जियूँगा सौ-सौ वर्षों भर, माथे की रेखाओं पर ही करता है निर्भर। पर मैं करूँ दुआएं चाहे दो पल जीवन पाऊँ , किन्तु हों मदमस्त सभी पल, मधुशाला हो घर ||
इंद्रधनुष के झूले ने है चित्रित किया है अम्बर, इसका बनना वायु में जल-कण पर है निर्भर | इसी तरह जीवन में गर न बरसे प्रेम-फुहार , फीका-फीका लगने लगता महलों जैसा घर ||
Copyright Kvmtrust.Com