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Back to Ghar verse
मुझे न भाएँ पौंड और रूबल खीचें न डॉलर , नहीं दासता करूँ किसी की मानूं न आर्डर। मैं डुग्गर का वासी सह सकता हूँ भूख व प्यास, देश बेच कर कभी बनाऊंगा न अपना घर ||
जम्मू में है ग’रने-वसाका थूहर और कीकर, साँप, ‘गनाह’ बिच्छू ज़हरीले और विषैल विषधर। लेकिन यहाँ की बोली मीठी जाने सब यह बात , जिस के कारण गूँज रहा है डुग्गर का घर-घर ||
जम्मू विश्वविद्यालय गया मैं , शिक्षा के मंदिर गीता बाइबिल मुझे ना दीखे-कहते प्रोफेसर | “काहे ढूंढ रहे हो यह सब, साइंस वगैरह पढ़ लो , मैं कहता अंधकार-में हो तुम रहकर बिजली-घर ||
शालीमार और चश्माशाही झरनों की झर-झर , पहली बार जो होंठ थे चूमे तेरे श्रीनगर | डल के भीतर एक शिकारी , बैठे मैं और तू , क्या कर बैठे,हमने चाहे कैसे-कैसे घर ||
एक दफा मैं निपट अकेला गया था सन्नासर , चुम्बक जैसे कोई खींच लोहे को ऊपर | सर इसका सूखा है लेकिन सुन्दर सहज नज़ारा, अगर कहीं तौफीक हुई तो यहाँ बनाऊंगा घर ||
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