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Back to Ghar verse
समय विकट वह आने वाला लोगों के ऊपर , नाम के बदले जब व्यक्ति का होगा बस नंबर | मैं सुविधा के खातिर लूँगा तब वह नंबर केवल , लिखा जो बिजली वालों ने है आकर मेरे घर ||
सबको एक सामान धरा पर देता परमेसर, राजा रंक जिनवर पंछी, निर्बल ज़ोरावर | चरसी और नशेड़ी को भी देता दिन प्रतिदिन, चौबीस घंटे भेदभाव न उसके लंगर-घर ||
गांधी बना न जाए यारो,पहन के तन पे खद्दर, गांधी टोपी पहन के या फिर लम्बे देकर लेक्चर | कर्मों का योगी था गांधी, सत्य था उसका बल, राज दिलों पे करता था पर स्वयं था वह बेघर ||
आज तो बस है आज कहूँ मैं चल तू इसी डगर, इंतज़ार ही आया हिस्से कल ना आया मगर | आज को आज ही भोगूँगा कल की जाने कौन, कल न जाने किसका होगा आज है मेरा घर ||
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