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Back to Ghar verse
पुरुष सांड है प्यार है उसका जिस्मों की थर-थर , औरत गाय है उसकी प्रीत में होता बहुत सबर | बीज गरब में धारण करती, रक्त से करती सिंचन , पुरुष बीज दाल कर केवल उसे बिठाता घर |
औरत ज़ात तो कैद पड़ी है हर घर के अंदर, यह हालत अब नहीं रहेगी बहुत देर तक पर। जिस घर में वह कैदी बनती होती वह प्रलय, जिस घर रहती देवी बन कर बस बसता वह घर ||
वे योद्धा थे, ज़ालिम थे वे सब है मुझे खबर , ज़ुल्म किये मेरे पुरखों ने कैसे बेटियों पर | वंशावली दिखाते अपनी होती मुझे ग्लानि , धिक वीरता, दफनाते नवजात बेटियां घर ||
आँख हिरनिया भवें कमानी काजल है नश्तर, तेज़ कटीले तीर नज़र के छोड़ मेरी खातिर | होंठ तुम्हारे नारंगी से दांत मखाने से , तू आई तो स्वर्ग बना है भाग-भरा है यह घर ||
खीझ न मेरी अम्मा न तू ऐसे रूठा कर , बतलाता हूँ कहाँ रहा मई फिरता यूँ आखिर | एक गौरेया घर थी बुनती उसको झाड़ा हैरान , रहा देखता देर लगी यूँ मुझे लौटते घर ||
एक ज़िद्दी और चंचल बालक चढ़ा जो पीपल पर , अम्मा जा तू, न लौटूंगा साँझ ढले तक घर | ठोकर लगी जो अनजाने में हुआ वह लहूलुहान , ज़ोर ज़ोर से रोते बोला ले चल अम्मा घर
एक पण्डितायन बाली विधवा उसका भी था घर, उसके तन की तपन-जलन अब दूर न होती पर | घर वह उस अभोल का दमघोटूं एक जेल, तभी कहूं मई तोड़ ज़ंजीराज नया बसा ले घर ||
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