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बिन तेरे मैं साथी, भटकूं दुनिया में दर-दर , मेरा कोई हमदम न था तरसा जीवन भर | चाहत-संशय-तर्क अनगिनत देह में रहे समाये , और नसों मैं हुए धमाके ढह गया मेरा घर |
शिकार यार बनाया झेले ज़हरीले खंजर , दिल का मॉस खिलाया उसके टुकड़े टुकड़े कर| पर उसने ये चुग्गा चुग कर ऐसी भरी उड़ान, खेत पराये जाकर बैठा, बैठा दूजे घर ||
घर हौंसला होता है बच्चे मांगे बहियन पर, पंख मिले तो भरे उड़ाने बच्चे गिर फर-फर| बैठे अकेले अम्मा रोती , रहता बाप उदास, नीड बनाते बच्चे अपना, कर के सूना घर
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