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‘कुंजों’ की निंदा होती है-देश है यह डुग्गर, छोटे पंखिन से सीमित है इनका सदा सफर | अन्य कोई भाषा न करती कुंजों का तिरिस्कार , इसी लिए की इन कुंजों के बहुत दूर है घर ||
गंवई-देहाती जंग को जाते योद्धे यह निडर , देशभक्त, पर देश कौन-सा, कुछ ना होश-खबर | जंग लगी है किस कारणवश इतना भी ना जाने, पर यह जाने उन्हें बचाने लड़ कर अपने घर ||
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