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मुझे न भाएँ पौंड और रूबल खीचें न डॉलर , नहीं दासता करूँ किसी की मानूं न आर्डर। मैं डुग्गर का वासी सह सकता हूँ भूख व प्यास, देश बेच कर कभी बनाऊंगा न अपना घर ||
जम्मू में है ग’रने-वसाका थूहर और कीकर, साँप, ‘गनाह’ बिच्छू ज़हरीले और विषैल विषधर। लेकिन यहाँ की बोली मीठी जाने सब यह बात , जिस के कारण गूँज रहा है डुग्गर का घर-घर ||
डोगरी की बदहाली पर है मुझ को बहुत फिकर, न कोई पढ़ता-सुनता न ही करता कोई ज़िकर। शायर इसके इक-दूजे से झिझके-ठिठके रहते, बिना दौड़ के बेदम होकर बैठे रहते घर ||
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