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शालू बीटा गोपी बनती तू लेकर गागर, ‘गिद्दा’ गाती, एक्टिंग करती, और बनती एक्टर। मेहनत से पढ़- लिख कर तू भी सीख ले थोड़ी हिंदी , मानोगी जो ये सीख मेरी फिल्म बनाएंगे घर ||
रश्मि बेटे तू खाती है चीनी और शक्कर, सुन तू मेरी, तुझे बताऊँ जीवन का इक गुर | तेरी मीठी-नर्म तबीयत और तेरा यह हठ, इन्हीं में अनुरूप रचोगी मन-मर्ज़ी का घर ||
पूनम बेटी बात सुनो तुम तनिक कान धार कर, जान लो , कोई जान सका न किस्मत का चक्कर| जो होना है, हो जायेगा, जाने कौन क्या होगा, तेरे भाग में क्या बताऊँ लिखा है किसका घर ||
कहे कहावत मात-पिता की करनी भुगतेय पुत्तर , लेकिन ऐसी चिंताओं से उठ जा तू ऊपर | बुरा किया जो पुरखों ने, तू भोग ले उसका अपयश, पर अच्छाई उनकी लेकर सजा ले पाना घर ||
रंगमंच जो घर मेँ हो तो फिर उसके अंदर, भेदभाव की दीमक लगती है और व्यापे डर | ऊपर-ऊपर प्रेम दिखावा भीतर विश्वास , इसी तरह जर्जर हो जाते है खड़े खड़े ही घर ||
समय बहुत ही ज़ोरावर है , किन्तु मौके पर, रेखा कोई अनजानी सी , खींचो सीने पर | यही समय तो रास रचाता, देता है सुर ताल , प्रेम प्रीत से गीत बने फिर , लाड-प्यार से घर ||
एक दिन मई दुखियारा पहुंचा शिवजी के मंदिर , मगन खड़ा था शिव-अर्चन में साधु एक्कड़ | मई बोलै विपता का मारा सीख दीजिये कुछ , बोलै वह, क्यों आये यहाँ पर तेरा मंदिर घर ||
खीझ न मेरी अम्मा न तू ऐसे रूठा कर , बतलाता हूँ कहाँ रहा मई फिरता यूँ आखिर | एक गौरेया घर थी बुनती उसको झाड़ा हैरान , रहा देखता देर लगी यूँ मुझे लौटते घर ||
कुड़ी वह गांव बगूने की रूपवती चंचल, उसके रूप अनूप पे जाके अटकी मेरी नज़र | देख के उसको दिल खिल उठता रखूं उसको पास , जब तक जीवन तब तक होगी प्रीत हमारा घर
तीर्थ स्थान मिले बेगाने, हर एक तीर्थ पर, गर्व करें अपनी भक्ति पर बड़े-बड़े मंदिर | भक्त हैं एक-दूजे को देते पते-आशीषें-भेंटें, पर सब जाते सुख पाने को अपने-अपने घर ||
कुड़ी एक गावँ बगूने की रूपवती चंचल, उसके रूप-अनूप पे जाकर अटकी मेरी नज़र | देख के उसके दिल खिल उठता रखूँ उसको पास, जब तक जीवन तब तक होगी प्रीत हमारा घर ||
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