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सभी पैंतरे ठीक पड़े जब होता है बेहतर, हद पहचाने इन्सां, खेले सीमा के भीतर। इस से पहले किस्मत उसकी बदले अपनी चाल , यारों की टोली से बोले – मैं चलता हूँ घर ||
कहे वेदना कलाकार से सुन मेरे मित्र , निपट अकेली रेखाओं से बना रहा चित्र। तेरे चित्रों में जीवन की रंगत तब झलकेगी , जब मेरे हित खाली रखोगे तुम मन का घर ||
होनी तो होकर रहती है काहे करे फिकर, तभी कहूँ मैं प्यार तू करले, करले प्यार तू कर | मिलन ख़ुशी लेकर आएगा, देगा दुःख वियोग, घर न अपना कहलाएगा, खाली सूना घर ||
खाली रूह है तेरी टेड़े जीने के औज़ार , सुन्दर-सा लिबास पहन ले रंग ले तू वस्त्र | आँखों को चुंधियाने वाली लौ ज़रा-सी ले ले , दे अपने अंधियारे तन को जिल जिल करता घर ||
करले खर्च कमाई साड़ी जीवन है नश्वर , मिटटी की काया मिलनी है मिटटी के अंदर | नहीं रहेंगे गीत गवैये ना दौलत ना आस , तुझको भी माटी होना है माटी होगा घर ||
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