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सपनो के आकाश में साथी नीचे तनिक उतर , हाथ सलामत तेरे इनसे काम ज़रा तू कर | बिन उद्यम के सपने तो साकार नहीं है होते , पुरुषार्थ साकार है करता सपनो वाला घर ||
कठिन दिशा गर पकड़ी है तू रास्ता पूरा कर, वार्ना दुनिया कर देती है अपमानित दर-दर| मुश्किल को जो आसां करके घर को तुम लौटोगे, अभिनन्दन को मचल देगा हश-हश करता घर||
जो बेघर हैं उनके हित में इस दुनिया अंदर , अपना नहीं ठिकाना कोई ना ही अपना दर | करें चाकरी घर-घर जा कर जमा करें दौलत , आशा है तो केवल इतनी हो अपना भी घर ||
शौक अनोखा पाला है गर मन मंदिर के अंदर, साध बना लो उसको अपनी सब साधों से ऊपर | भूख और लोभ को दिल से त्यागो, उसकी राह ना छोड़ो, मिट जाये हस्ती तेरी या उजड़े तेरा घर ||
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