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चलो सुनें चूं- चूं चूसों की मुर्गों की कुड़- कुड़ , मन किया तो मोल से लेंगे चूज़ा या ‘कुक्कड़’ | प्रीत भी दिल के टुकड़े कर के इसी तरह है खाती , दिल यह समझे प्रेम ही उसका सुखद सुहाना घर ||
मेरे प्यार को नज़र लगाती देखे देखे बितर-बितर , दुनिया मुझको कुचल-कुचल कर करती है गोबर | मैं गोबर यह लेकर अक्सर लेपूं वो दीवार , जिस जगह पे टंगी है तेरी फोटो मेरे घर ||
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