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मुल्ला दे जो बांग तो उसकी बांग अनसुनी ना कर, पंडित पूजा करे तो सुन ले उसका भी मंतर। राम-रहीम तो हैं इन छोटी सीमाओं से दूर, यह सारा ब्रह्माण्ड उसी ‘बेघर’ का अपना घर ||
छोटे मन की लघु उड़ाने, बड़ों का ऊँचा अम्बर, छोटे दर्द के छोटे मरुस्थल बालू ज़रा सा भीतर। पीड़ा बड़ी के लिए चाहिए दिल भी बहुत विशाल , हर इक वस्तु माँगे अपने लिए मुनासिब घर ||
कब से आतुर बैठा हूँ मै तुझसे नेह लगाकर, और विलग न रह पाउँगा दशा हुई कातर | मुझे बता प्रियतमा ऐसे प्रेम निभेगा कब तक , छोड़ विछोह , आ चलो बनाएँ रास्ता-बस्ता घर ||
नक़्शे सोचो, रूप विचारो सुन्दर घर के, पर, अपना नाम लिखा लो चाहे ईंट-ईंट ऊपर | खूब सजाओ खूब संवारो इसका कोना-कोना, लोग देख कर बरबस बोलें, कितना सुन्दर घर ||
जीवन तरसायेगा, कुचलेगा कब तक आखिर, मई वियोगी ज़िद है मेरी अड़ियल ज्यों खच्चर | चाबुक खून चुभन सहूँ पर न छोडूं यह ज़िद , घर बनाने आया हूँ तो,निश्चित बनेगा घर ||
एक दिन मई दुखियारा पहुंचा शिवजी के मंदिर , मगन खड़ा था शिव-अर्चन में साधु एक्कड़ | मई बोलै विपता का मारा सीख दीजिये कुछ , बोलै वह, क्यों आये यहाँ पर तेरा मंदिर घर ||
दिन चढ़ते ही पंख पखेरू , मेहनतकश चाकर, जीने का संघर्ष है करते फिर कितने यह दिन-भर | सांझढ़ले जब हो जाते है थक कर चकनाचूर , थकन मिटाने दिन भर की वो वापस आते घर||
कुड़ी वह गांव बगूने की रूपवती चंचल, उसके रूप अनूप पे जाके अटकी मेरी नज़र | देख के उसको दिल खिल उठता रखूं उसको पास , जब तक जीवन तब तक होगी प्रीत हमारा घर
मत कर निंदा कुंज की ये तो लम्बा करे सफर, विशराम-स्थल की खोज में चाहे थक जाते है पर| खास जगह ही बने घोंसला , ममता का बंधन , लम्बे सफर पे फिर उड़ जाना छोड़ के अपना घर
जो बेघर हैं उनके हित में इस दुनिया अंदर , अपना नहीं ठिकाना कोई ना ही अपना दर | करें चाकरी घर-घर जा कर जमा करें दौलत , आशा है तो केवल इतनी हो अपना भी घर ||
घर का लोभ तो होता है हर लालच से ऊपर, घर की खातिर दुनिया लेती दुनिया से टक्कर | खून-कत्ल होते भाइयों में इसके ही ख़ातिर , हर कोई इसकी रक्षा करता , ऐसी चीज़ है घर ||
बाबुल कहता है बैठ लाड़ली डोली के अंदर , यह वर तेरा , ईश्वर तेरा , वो घर अब मंदिर | बिटिया पूछे कब लौटूंगी बापू अपने घर , बाबुल बोले आज से बेटी वो ही तेरा घर ||
बहुत मिला धन कुछ लोगो को मिला ना चैन मगर , चोर – बाजारी के कारण ही मन में समाया डर मखमल के गद्दों पर भी न आती नींद उन्हें , चोर यदी मन में आ बैठे नरक बने है घर ||
घर की शोभा बने गृहस्ती और उसके अंदर आशाओं के बीजों से ही फूटे प्रेमांकुर | यह है क्यारी तू माली है सींच गुढ़ाई कर, मधुर सुवासित गुलदस्तों से सजेगा तेरा घर ||
झूठ , फरेब ,होड़, षड़यंत्र होते हर दफ्तर, खींचातानी, ताक-झांक, हेरा-फेरी और डर | यह कूड़ा गर घर ना लाओ, रखो इससे पाक, छोटे-बड़े कुशल खुश होकर रहते ऐसे घर |
दर-दर भटकूँ पूर्व, पश्छिम,दक्षिण, और उत्तर, मुझसे कहीं छुपा रखे थे दाता ने अक्षर | गली-गली मैंन भटका, कोमल पंक्ति मिली ना एक, मिली अंततः मुझे अचानक खड़ी वो मेरे घर ||
तीर्थ स्थान मिले बेगाने, हर एक तीर्थ पर, गर्व करें अपनी भक्ति पर बड़े-बड़े मंदिर | भक्त हैं एक-दूजे को देते पते-आशीषें-भेंटें, पर सब जाते सुख पाने को अपने-अपने घर ||
एक पण्डितायन बाली विधवा उसका भी था घर, उसके तन की तपन-जलन अब दूर न होती पर | घर वह उस अभोल का दमघोटूं एक जेल, तभी कहूं मई तोड़ ज़ंजीराज नया बसा ले घर ||
मै पागल था दुनिया ने भी समझा , की न खातिर, मैंने भी सम्मान दिया न , किया न उसका आदर | देता क्या आदर उसको जो समझे मुझे अकिंचन, उसकी खातिर क्यों उजाडूँ मै अपना ही घर ||
जैसे झरने ढूंढे नदियां ,नदियां दूँढे सर, जैसे हवा आसमानों में खोजे निज दिलबर | कोई यहाँ नहीं एकाकी सभी हैं जोड़ीदार, प्रीत में फिर क्यों मिल न पाते तेरे मेरे घर ||
मत कर निंदा कुंज की यह तो लम्बा करे सफर, विश्राम-स्थल की खोज में चाहे थक जाते हैं पर | ख़ास जगह ही बुने घोंसले , ममता का बंधन , लम्बे सफर पे फिर उड़ जाना छोड़ के अपना घर ||
करले खर्च कमाई साड़ी जीवन है नश्वर , मिटटी की काया मिलनी है मिटटी के अंदर | नहीं रहेंगे गीत गवैये ना दौलत ना आस , तुझको भी माटी होना है माटी होगा घर ||
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