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जम्मू में है ग’रने-वसाका थूहर और कीकर, साँप, ‘गनाह’ बिच्छू ज़हरीले और विषैल विषधर। लेकिन यहाँ की बोली मीठी जाने सब यह बात , जिस के कारण गूँज रहा है डुग्गर का घर-घर ||
हाथ जोड़ के वंदन करना गए जो जम्मू नगर, शीश झुका कर उसकी मिट्टी का करना आदर। रक्त से इसको सिंचित करते बेटे शेर जवान, बेशक बंजर कहलाता है पर वीरों का घर ||
एक दफा मैं निपट अकेला गया था सन्नासर , चुम्बक जैसे कोई खींच लोहे को ऊपर | सर इसका सूखा है लेकिन सुन्दर सहज नज़ारा, अगर कहीं तौफीक हुई तो यहाँ बनाऊंगा घर ||
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