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मेरा भाग्य सराह रहा वो हाथ की रेखा पढ़ कर, फीस भरो तो बतलाता हूँ किस्मत का चक्कर | दिल करता है कह दूँ पंडित अपना भाग्य सम्भालो, फिर सोचूं कुछ चुग्गा लेकर उसे भी जाना घर ||
इतराता है क्यों कर जातक मार नीरीह कबूतर, थप्पड एक पड़ा तो पल में होश उड़ेंगे फुर्र | और कहीं आज़माओ ताकत मत मारो मासूम, बाहर कहीं जो मिला भेड़िया, जाओगे रोते घर ||
अरे शिकारी मार न पंछी इतना जुल्म न कर, फल भीषण है इस गुनाह का लागे तूने न डर | यह निर्बल,बलवान बलि वह देखे सारे पाप, हँसता- बसता क्यों उजाड़े तू किसी का घर ||
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