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जम्मू में है ग’रने-वसाका थूहर और कीकर, साँप, ‘गनाह’ बिच्छू ज़हरीले और विषैल विषधर। लेकिन यहाँ की बोली मीठी जाने सब यह बात , जिस के कारण गूँज रहा है डुग्गर का घर-घर ||
‘कुंजों’ की निंदा होती है-देश है यह डुग्गर, छोटे पंखिन से सीमित है इनका सदा सफर | अन्य कोई भाषा न करती कुंजों का तिरिस्कार , इसी लिए की इन कुंजों के बहुत दूर है घर ||
डोगरी की बदहाली पर है मुझ को बहुत फिकर, न कोई पढ़ता-सुनता न ही करता कोई ज़िकर। शायर इसके इक-दूजे से झिझके-ठिठके रहते, बिना दौड़ के बेदम होकर बैठे रहते घर ||
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