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बहुत ही सुन्दर और बहादुर शेरों में बब्बर, मगर शेरनी बच्चे पाले ठांव-ठांव जाकर | शेर तनिक न बने सहायक काहे का वनराज, निज-हितकारी गृह-स्वामी का घर निकम्मा घर ||
‘प्यार कृपण न, क्यों लगाए तू िक्कड़-दुक्कड़, अपरिमित है दौलत इसकी , क्या करना गिन कर | दिल इसका है शेरों जैसा , जान लुटा देता है , बाँहों मेँ अम्बर भरता है तभी तो इसका घर ||
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