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मज़दूर के पैसे लेके जाता ठेके पर, घर आकर फिर गर्जन करता यह कंजरी का घर | प्रेत नशा, न दिखते उसको बच्चे भूखे-प्यासे, घर घोंसला होता है जो समझे उसको घर ||
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