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मानव जैसे-जैसे चलता साथ चले अम्बर क्षितिज की दूरी चलते-चलते मिटती नहीं मगर | द्रिष्टी और पृथ्वी के सम पर क्षितिज बना ही रहता, इस तरह जो चले उम्र भर कभी न पहुँचे घर ||
जीवन क्या है ? घास का तिनका, मैं सोचूँ अक्सर, अथवा फूल क्यारी का है रंग बहुत सुन्दर | एक हवा के झोंके से ही बिखरे फूल और पात, जिस घर उगते फूल वो बनता अजब अनोखा घर ||
ईश्वर ने है दिए रात को अनगिन नयन हज़ार, जब डूबे है सूरज दुनिया सो जाती अक्सर। लौ की प्यासी दुनिया को न मिलते प्रेम-सपन, लालटेन पाकर अँधियारा, जगमग करे है घर।|
चल रे मन आ सुनें कहीं जा चिड़ियों की फुर-फुर, जन्म -मरण के झंझट भूलें कड़वे और बे-सुर | मस्त हुलारे लेकर मनवा झूले झूला आज , इन्ही सुहानी खुशियों में संग रंग ले अपना घर ||
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