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मुझे खेद है क्यों उपलब्ध न मदिरा का सागर, क्यों नहीं गुल्ली-डंडा? क्यों न चिड़िया की चूर-मुर | इन कष्टों में डूबे मुझको याद सताए तेरी , फिर सोचूँ सब ठीक है जब तक तुम हो मेरे घर ||
आज तो बस है आज कहूँ मैं चल तू इसी डगर, इंतज़ार ही आया हिस्से कल ना आया मगर | आज को आज ही भोगूँगा कल की जाने कौन, कल न जाने किसका होगा आज है मेरा घर ||
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