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इन्सां बड़ा खिलाड़ी बनता खेल-खेल मगर , वाह-वाही की खातिर हर पल बनता है एक्टर। थपकी अच्छी होती केवल वही जो हो स्वाभाविक , वारना उसका घर बन जाता बिलकुल सिनेमाघर ||
बदल भैया बरसोगे जब डुग्गर देश में जाकर, मिलना उससे जिसका नाम है केहरि सिंह ‘मधुकर’ | मेरी वाह-वाह देकर उसको ‘डोली’ कविता पर, उसका उत्तर बिना सुने ही लौट आना तुम घर ||
कहे यदि वह मुझे कि- तेरी कविता है सुन्दर, पूजूंगा उसको रख अपना माथा पैरों पर। नहीं थकूंगा लेते उसके गोरे गालों का चुम्बन, कर-कमलों से पकड़ के उसको ले आऊँगा घर ||
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