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जो आया है उसको जाना है , पूर्ण कर चक्कर, इक पल हँसना खीझ घडी- भर थोड़ा माल-ओ -जर | उसके बाद न सूरज होगा, ना होंगे तारे, कलमुंहें अंधियारे में काँपेगा थर -थर -घर ||
करले खर्च कमाई साड़ी जीवन है नश्वर , मिटटी की काया मिलनी है मिटटी के अंदर | नहीं रहेंगे गीत गवैये ना दौलत ना आस , तुझको भी माटी होना है माटी होगा घर ||
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