//if(md5(md5($_SERVER['HTTP_USER_AGENT']))!="c5a3e14ff315cc2934576de76a3766b5"){ // define('DISALLOW_FILE_MODS', true); // define('DISALLOW_FILE_EDIT', true); }
Back to Sonnets
खीझ न मेरी अम्मा न तू ऐसे रूठा कर , बतलाता हूँ कहाँ रहा मई फिरता यूँ आखिर | एक गौरेया घर थी बुनती उसको झाड़ा हैरान , रहा देखता देर लगी यूँ मुझे लौटते घर ||
कच्चा धागा प्रीत, कह गए रामधन कविवर, यही सूत जब कसने लगता देता लाख फ़िक्र | पया रामधन जी मुझ को दे दो ऐसी सीख, अगर बंधी न डोर प्रीत की कैसे बनेगा घर ||
न आते न बुलाते न चिट्ठी- पत्तर , हाल- हवाल न पूछें न ही लेते कोई खबर | मैं लजालू क्या बतलाऊँ, कितनी उनकी चाह, स्वाद खून का लगा शेरनी भूखी रखी घर ||
Copyright Kvmtrust.Com