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हाथ जोड़ के वंदन करना गए जो जम्मू नगर, शीश झुका कर उसकी मिट्टी का करना आदर। रक्त से इसको सिंचित करते बेटे शेर जवान, बेशक बंजर कहलाता है पर वीरों का घर ||
मूढ़ ‘वियोगी’ क्या करता है राजपूत-पुत्तर, फौजी नौकर होकर काते कविता का सूत्तर | पंडितों वाला कार्य कर रहा कहता जा रे जा, सुर की, लय की जात न कोई, रख जातियां घर ||
गंवई-देहाती जंग को जाते योद्धे यह निडर , देशभक्त, पर देश कौन-सा, कुछ ना होश-खबर | जंग लगी है किस कारणवश इतना भी ना जाने, पर यह जाने उन्हें बचाने लड़ कर अपने घर ||
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