Back to Sonnets
रूप नहीं मरता है हरगिज़ रहता है सदा अमर , चोला एक त्याग के पहने दूजे यह ‘बस्तर’ | माँ मृत्यु के बाद भी बेटी-रूप में जीवित रहती, रूप बदलता रहता ऐसे रहने हेतु घर ||
तर्क और तकरार का मन में भरा रेत-सागर, इस पर चलने से होता है मर जाना बेहतर। अगणित पड़ जाते हैं ऐसे रूह के ऊपर , डगर छोड़ कर रुकना पड़ता किसी-किसी के घर ||
मुहम्मद,मरियम, महावीर और सिखों के सतगुर ईसा,बुद्ध, लाओत्से, मोजिज रूहों के डॉक्टर | पीड़ा छलनी करे कलेजा कोई दवा नहीं देता , कई लुकमान बने बैठे है अपने-अपने घर ||
Copyright Kvmtrust.Com