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जीवन दिया मुझे ब्रह्मा ने, पर जीवन देकर, सोच रहा है इसको भाते धरती और अम्बर | सोच रहा हूँ उससे क्या मैं वाद-विवाद में उलझूं, ब्रह्मा मस्त है अपने घर में, मैं व्याकुल अपने घर ||
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