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समय विकट वह आने वाला लोगों के ऊपर , नाम के बदले जब व्यक्ति का होगा बस नंबर | मैं सुविधा के खातिर लूँगा तब वह नंबर केवल , लिखा जो बिजली वालों ने है आकर मेरे घर ||
मानव अक्खड़ होते हुए भी होता बहुत चतुर, पड़े ज़रूरत तो कर लेता हृदय को पत्थर। इसकी जिजीविषा की महिमा है वेदों में वर्णित, वक्त पड़े तो त्याग दे बिन-झिजके यह अपना घर ||
समय बहुत ही ज़ोरावर है , किन्तु मौके पर, रेखा कोई अनजानी सी , खींचो सीने पर | यही समय तो रास रचाता, देता है सुर ताल , प्रेम प्रीत से गीत बने फिर , लाड-प्यार से घर ||
सबको एक सामान धरा पर देता परमेसर, राजा रंक जिनवर पंछी, निर्बल ज़ोरावर | चरसी और नशेड़ी को भी देता दिन प्रतिदिन, चौबीस घंटे भेदभाव न उसके लंगर-घर ||
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